Wanderer's Diary

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"परमात्मन परब्रम्हे मम शरीरं पाहि कुरु कुरु स्वाहा".....
कल्याण मस्तु..


गर आ जाये जीने का सलीका भी तो .........चंद रोज़ आफताब है इस ज़िन्दगी को गुलज़ार करने के लिए..

मंदिर बहुत दूर है चलो किसी रोते हुए हुए बच्चे को हंसाया जाए...

इन यादों के उजियारे को अपने साथ रखना ना जाने किस रोज़ किस डगर किस घडी इस ज़िन्दगी क़ि शाम होगी..

Stay Rolling .......Keep Rocking .....and Keep Smiling...........

Tuesday, February 22, 2011

वक़्त की रेत पे तेरी चाल नज़र आते हैं..



किरण से मोती साहिल पे नज़र आते हैं......
वक़्त की रेत पे तेरी चाल नज़र आते हैं..


जो खोमोश हो वादियाँ गुमशुम सी....
दिल को तेरी सदायें सुनायी देती हैं..                                 


इब्तदा मै कोई शायर ना सही.
पर जुबान पे चंद लब्ज उभर आते हैं..


गुमनाम सी राहों पे जब चलते हैं तोह,,
कंपकंपाते तेरे लब्ज पुकारते चले आते हैं ..


जब कभी भी हम तन्हा होते हैं..
तेरी यादें चिलमन से उभर आती हैं..


ज़िन्दगी गुलज़ार होती है तेरी रोशनी से..
तेरी हर मुस्कान हमें ख़ुशी नज़र कर जाते हैं.


वो बचपन क़ि यादें............



वो बचपन क़ि यादें
वो चिड़ियों क़ि चह चहचाहट

वो बागियों क़ि बहारें ....
भौंरों क़ि भिनभिनाहट
फूलों क़ि बयारें
वो तितलियों क़ि कतारें
उन्हें पकड़ने को उतावला मेरा मन
आसमान में उड़ने को लालायित मेरा मन..

वो नदियाँ और झरने
और उनकी मद्धम फुहारें
वो हलकी सी बारिश में फुदकता मेरा मन
कश्तियों और करवटों में संवरता बचपन

                                                       
बहुत याद आती हैं वो बचपन क़ि यादें
वो भरी दुपहरी में घरौंदे बनाना...
उन मिट्टी के ढांचो में इरादों को समोना..
उन सुनहरे पलों को रंगों से संजोना..

वो दादी क़ि किस्से और कहानियां
और दादा के हुक्के क़ि रवानियाँ...
वो काली रातों में तारों का टिमटिमाना...
उन क़ि धुंधली रोशनी में जुगनूं का जगमगाना..

वो सुनहरी बातें और आंगन में गुजारी रातें.
बहुत याद आती है वो  बचपन क़ि यादें

ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है...........



इक हसरत थी क़ि आंचल का प्यार मिले..
मैंने मंजिल को तराशा मुझे बाज़ार मिले...
जो भी तकदीर बनाता हूँ बिगड़ जाती है..
देखते ही देखते दुनिया ही उजड़ जाती है..

मेरी कश्ती तेरा तूफ़ान से वडा क्या है...
ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है..
तुने जो दर्द दिया उसकी कसम खता हूँ ...
इतना ज्यादा है क़ि एहसास दबा जाता हूँ..
मेरी तकदीर बता और तकाज़ा क्या है..

मैंने जस्बात के संग खेलती दौलत देखि...
अपनी आँखों से मोहब्बत क़ि तिजारत देखि...
ऐसी दुनिया में मेरे वास्ते रखा क्या है..
ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है

आदमी चाहे तो तकदीर बदल सकता है..
पूरी दुनिया क़ि वो तस्वीर बदल सकता है...
आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है..
ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है...

तुम कहीं से आ जाओ......!!


दिल में इक चुभन सी है, तुम कहीं से आ जाओ...
हर तरफ अगन सी है, तुम कहीं से आ जाओ...
                               
ग़म क़ि भीगी रातों में अपना दिल नहीं लगता..
आँखों में पवन सी है, तुम कहीं से आ जाओ...

अब खुली फिजा में भी सांस लेना मुश्किल है...
अब अजब घुटन सी है, तुम कहीं से आ जाओ...

हर ख्याल ओ ख्वाब मुरझाई सी है
रूह पर शिकन सी है, तुम कहीं से आ जाओ...


हिज्र  के  अंधेरो  में  इंतज़ार  है  तेरा
दिल  में  इक  किरण  सी  है ,तुम कहीं से आ जाओ...

शाम -ए -वस्ल  के  घुंघरू  नाचते  हैं  सोचों  में
फिर  वही  छनन  सी  है ,तुम  कहीं  से    जाओ
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क्या  कहूँ  इस  इश्क  में  मुझ  पे  क्या  गुज़री  है
तन्न  में  इक  तडपन  सी   है ,तुम कहीं से आ जाओ...
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बाघ -ओ -गुल  भी  गैर  हैं ,राष्ते भी  पराये  हैं
जी  बैचेन से है ,तुम कहीं से आ जाओ....
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जाने  कितनी  रातों  से  मुज़्तरिब  सा  हूँ  वसीक
जाने  क्या  लगन  सी  है ,तुम कहीं से आ जाओ......!!!

अनजान है डगर फिर भी हौसला है हमसफ़र ...............


ये तो नहीं है मेरी मंजिल, फिर क्यों हूँ मै यहाँ..
जाना तो है और कहीं मगर, मैं जाऊं भी तो कहाँ..

ऐसा लगता है ज़िन्दगी, के क्या मैं कहूं..
किताबों में लिखी हुई जैसे हूँ मै कोई दास्ताँ..

यूँ ही ना गुजर जाये उम्र राहें तलाश करने में..
कहीं तो होगा ज़रूर मेरे, ख्वाबों का आशियाँ...

समंदर से गहरा है दर्द ए दिल मेरा भी....
बयां कर नहीं सकते, होंठो पे है खामोशियाँ...

                                               

मुकद्दर तो अपनी ऐसी है क़ि ताजुब है..
हर रोज होता है लम्हा ..मेरे सब्र का इम्तेहान..

जी में तो आता है के चले जाऊं दूर कहीं..
बेजार लगने लगता है, ये पलछिन जहाँ...

उम्मीदों का चराग कहीं, बुझ ना जाये इस जद्दोजहद में..
सुन ले खुदा तुझसे, ये अर्जी है मेरी..

ख्वाहिश अधूरी थी जला रहा है कोई......


खुशहाल सी दुनिया है मेरी मिटा रहा है कोई..
ख्वाहिश अधूरी थी जला रहा है कोई...

वक़्त जब आया है उम्मीदों पे उतरने का..
सिरे से नीचे गिरा रहा है कोई........

लहर सि उठी थी साहिल पर जाने क़ि...
कश्ती मजधार में डूबा रहा है कोई...

जब लगा ज़िन्दगी रुक सि गयी है कहीं पे..
एहसास हुआ सीने में दर्द समां रहा है कोई..

चंद पलों का ख्वाब जो देखा...
नींदे मेरी चुरा रहा है कोई...

फासलों  का पता था फिर इक पल को लगा....
दिल क़ि धडकनों को बडा रहा है कोई...

                                                               
लगा क़ि ठहर जाते हैं इक पल को..
तो मेरे आशियाने को चना रहा है कोई...

निगेहबान थी मेरी नज़रें तेरी यादों क़ि...
वो कहते हैं नज़रें चुरा रहा है कोई....

मन बेजार परिंदा था मेरा ...
बंदिशों में घिरा जा रहा है कहीं...

पतंग मेरी ढीली थी उड़ा रहा है कोई...
पतवार मेरी हलकी सि मुहाने पे हिला रहा है कोई...

वीराने में ही सही बस्ती थी मेरी इक हम्नफाज
धीरे से उसके अक्स को मिटा रहा है कोई...

कल हो ऐसा क़ि हम ना रहें...
पर आज मेरा छिना जा रहा है कहीं....

दुनिया के भीड़ में हस्ती खोई जा रही है कहीं...
वक़्त के निशाने पे हर लम्हा खोया जा रहा है कहीं...

बस्ती मेरी वीरान है ...

तन्हा अकेला फिरता हूँ मै...
आसमान से ऊँचा उड़ता हूँ मै...

महफ़िल में कशिश ढूंढता हूँ मै...
ना जाने किसका पीछा करता हूँ मै..

प्यार ना सही दिल क़ि लगी करता हूँ मै..
मंजिल अनजानी है फिर भी चलता हूँ मै..


                                                        

कोई हमसफ़र साथ नहीं फिर भी आगे बढता हूँ मै..
तेरी आँखों में वक़्त क़ि ख़ुशी चाहा करता हूँ मै..

सी कर अपने दर्द को मुस्कुराया करता हूँ मै...
जब भी दिल होता है उदास गुनगुनाया करता हूँ मै...

ज़िन्दगी के मुक्कमल पलों को संजोया करता हूँ मै...
कभी कभी अपने साये से डरता हूँ मै..
मेरा दिल जानता  है कैसे बसर करता हूँ  मै..