Wanderer's Diary

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"परमात्मन परब्रम्हे मम शरीरं पाहि कुरु कुरु स्वाहा".....
कल्याण मस्तु..


गर आ जाये जीने का सलीका भी तो .........चंद रोज़ आफताब है इस ज़िन्दगी को गुलज़ार करने के लिए..

मंदिर बहुत दूर है चलो किसी रोते हुए हुए बच्चे को हंसाया जाए...

इन यादों के उजियारे को अपने साथ रखना ना जाने किस रोज़ किस डगर किस घडी इस ज़िन्दगी क़ि शाम होगी..

Stay Rolling .......Keep Rocking .....and Keep Smiling...........

Sunday, March 13, 2011

ज़िन्दगी मेरी खुली किताब है पलट के देखो शायद मुस्कुरा सकूं..


मुसाफिर हूँ अन्जान चलता हूँ गुमनाम
की शायद एक मुकाम बना सकूं...

सिद्दत है जीने की जिद है मुस्कुराने की..
की कल अपनी जगह बना सकूं..

चंद अरसों से बिखरे से हैं जस्बात..
उम्मीद है किसी रोज उन्हें संजो सकूं..
                                                                                           

वक़्त मुक्कमल और खैरियत नहीं न सही..
कल अपने हिस्से की दुनिया शायद पा सकूं..

गुनगुनाता हूँ सुर्ख तराने ज़िन्दगी के..
हर हालत में अपने दिल को बहला सकूं..

मै कोई शायर या जियाकर  नहीं...
लिखता हूँ की तन्हाइयों को मिटा सकूं..

आज की कुछ खबर है कल का नहीं ऐतबार
इसलिए जीता हूँ हर रोज की याद आ सकूं..

मिलेंगे कुछ पन्ने तुम्हे अपनी ज़िन्दगी के
मेरी किताबों में कहते हुए जो मै न बता सकूं...

साथ है मेरे यादें और कारवा ए सफ़र..
देखो शायद कल फ़तेह पा सकूं..

ज़िन्दगी मेरी खुली किताब है पलट के देखो शायद मुस्कुरा सकूं..

Thursday, March 3, 2011

अपनी हस्ती का एहसास लिए मै बरसों तडपता रह गया..



न कोई महफ़िल न कोई बियांबर रह गया...
एक अनजाने मंजिल की ख्वाहिश लिए....

मै हर शहर वीरान डगर भटकता रह गया..
खलिश और किवायद लिए अपने आप से जूझता रह गया..

रुख्श और शबाब आये भी तोह कुछ पल के लिए..
मैं पतझड़ में सावन तराशता रह गया...
                                                               
अब तो जैसे लगता है एक अरसा हो गया मुस्कुराये हुए..
मैं अपनी जद्दोजहद में अरमानो को कुरेदता रह गया...

इक अनजान सी शिकन मेरे चेहरे पे उभरता गया..
मै इक गुमनाम सी डगर पे मुद्दतों ठहर सा गया...

न कोई गिला न कोई शिकवा किसी से रह गया ..
अपनी हस्ती का एहसास लिए मै बरसों तडपता रह गया..