Wanderer's Diary

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"परमात्मन परब्रम्हे मम शरीरं पाहि कुरु कुरु स्वाहा".....
कल्याण मस्तु..


गर आ जाये जीने का सलीका भी तो .........चंद रोज़ आफताब है इस ज़िन्दगी को गुलज़ार करने के लिए..

मंदिर बहुत दूर है चलो किसी रोते हुए हुए बच्चे को हंसाया जाए...

इन यादों के उजियारे को अपने साथ रखना ना जाने किस रोज़ किस डगर किस घडी इस ज़िन्दगी क़ि शाम होगी..

Stay Rolling .......Keep Rocking .....and Keep Smiling...........

Thursday, September 22, 2011

Deep down the blue sky
My heart is beating by....

M Holding Thats why...
Rounds of violet n Butterfly

Makes me think of You n I....
Lots of zeal in my eye

Veins are saying Hello Hi...
Dreams of fleeing very high

Beyond regrets and clarify..
M holding Thats why...

Sunday, August 21, 2011

आवारगी और खालीपन है इस ज़िन्दगी में..

न कशिश न कोई तलब है इन नाकामियों में
आवारगी और खालीपन है इस ज़िन्दगी में...

वक़्त यूँ कटता लेके करवटें जैसे कि तूफ़ान
रह जाता है कारवां ए अंजाम मेरा राहों में..

उम्मीद न रही अब मुकम्मल सरहदों कि
रह गया हूँ खोकर कहीं इन गर्दिशों में...

न करीब है मंजिल कोई इस शहरे हयात में
बेनाम मुसाफिर से भटकते हैं खोये ख्यालों में..

Thursday, August 18, 2011

खिलते हुए इन उजालों में इक सवेरा हो तुम



खिलते हुए इन उजालों में इक सवेरा हो तुम
शीत की नमी सी ओझल एक पल हो तुम..
दूर किसी कायनात में हुई होगी बसर तुम्हारी 
पर आज मेरे मन का झरोखा हो तुम ...


बरखा की सदाओं में या उन सोख अदाओं में
किसी ग़ज़ल की कशिश या इक नगमा हो तुम..
जो देखूं तारों के ज़मात को या नीले आसमान को
लगता है मेरे ख्वाबों का दायरा हो तुम..


आज खोल दी जो बाहें मैंने
ज़िन्दगी मुस्कुराने लगी है...
खुश्क इन फिजाओं में मौसिकी
सूरज की किरणे खिलने लगी है...

जो पल गुजरा सिखा गया है कुछ
अब आने वाला पल संवरने लगा है...
धूं धूं कर जलता था कभी सीना
नई उमंगो में खिलने लगा है...

Tuesday, August 9, 2011

वक़्त की मिजान है दोस्ती

शीत सी शीतल पाखी सा माझिल
दो दिलों की दास्ताँ है दोस्ती...
कभी कशिश तो कभी तलब है
तो कभी तलबगार है दोस्ती..

मतलब की इस दुनिया से परे
अनबुझे लम्हों की बयां है दोस्ती
गुजरा कल आज की जुबान
और आने वाले पल की कहानी
वक़्त की मिजान है दोस्ती

चाँद भी कायल है जिस रिश्ते
का उसका नाम है दोस्ती
हर एहसास सा है मेरे दिल में तमिल
मेरे जीने का अरमान है दोस्ती

Wednesday, July 20, 2011

शुक्रिया उपरवाले और ज़िन्दगी तेरी नेमतों का..

♥♥̲̅̅H̲̲̅̅̅A̲̲̅̅̅P̲̲̅̅̅​P̲̲̅̅̅Y̲̅ ̲̅̅B̲̲̅̅̅I̲̲̅̅̅R̲̲̅̅̅T̅​̲̲̅̅H̲̲̅̅̅D̲̲̅̅̅A̲̲̅̅̅​Y̲̅♥♥

आया था पल सुहाना लेके दिन दीवाना..
हुई महसूस कुछ ख़ुशी इन गुजरे पलों में
लगा बेहतर हमें इब्तेदा यूँ मुस्कुराना
शुक्रिया आप सभी का दिया जो ये नजराना...


अब के सावन ये जो मेरे साथ हुई है
पलकें खुली और आगाज़ हुई है..

दिन था इस दुनिया में आने का
सुबह ही यादों की बरसात हुई है..

कुछ यार थे कुछ रह गए राहों में
गुजरते सालों में कुछ खास हुआ है..

सपने न हुए मेरे हकीकत तो क्या...
उन सपनो को जीने की आदत हुई है..

आज गर किसी का है तो कल मेरा भी होगा..
उम्मीद ही सही इबादत हुआ है..



किसी ने खूब कहा है तू ही बता ज़िन्दगी मैं कैसे तुझे अपने प्यार के दायरे में समो कर रखूं जो की तेरी हर सुबह जीने के एक दिन कम कर देती है..उम्र के २५वें बसंत में आने की ख़ुशी साथ ही गुजरे लम्हों की खलिश भी है उन्हें और जीने के लिए...शुक्रिया उपरवाले और ज़िन्दगी तेरी नेमतों का..


आया था पल सुहाना लेके दिन दीवाना..
हुई महसूस कुछ ख़ुशी इन गुजरे पलों में
लगा बेहतर हमें इब्तेदा यूँ मुस्कुराना
शुक्रिया आप सभी का दिया जो ये नजराना..

Tuesday, July 12, 2011

दरिया की सरहदें तोड़ो, सुकून को रास्ते बनाने दो..

दर्द की खलिश और बेबसी टूटे रिश्तों को जोड़ देती है..
गोयाकि रिश्ते टूटने से दर्द होता है और दर्द रिश्ते जोड़ भी देता है!!
मनुष्य मन से बड़ा कोई अजायबघर नहीं, जहां कब तस्वीरें,
आईने और मूर्तियां टूट जाती हैं और कब जुड़ जाती हैं। संवेदना से बड़ा कोई फेवीकोल नहीं!!
























चिमनियों सी ज़िन्दगी को अब तो सांस आने दो
दरिया की सरहदें तोड़ो, सुकून को रास्ते बनाने दो..

या मुझसे आकर पूछ लो दायरे मेरी हदों के
या मेरी तड़प को अपने सीने में समाने दो...

ये बड़प्पन है या कोई बेबसी जो रह रह के पीता है
जरा आँखों की गठरी खोल जो आता है आने दो..

हर आसमान से पहले माँ का आंचल है
इसे छु कर वजू कर लें मंजिल पे जाने को..

तुमको भी कोई चूमेगा राहों में तेरी बिछकर
एक बार ज़रा दुनिया को  हौले से गुज़र जाने दो..

दहलीज़ दिये सी जलती है सीने से लगा लो
या फिर बारिश को ज़रा अपना पैगाम सुनाने दो...


Friday, July 8, 2011

तनहा उनकी यादों में शाम हो गया.....

मुद्दतों मै इंतज़ार करता रह गया
वो आए भी दर को हमारे..रहे बेगाने
हिज्र के अंधेरों में उन्हें पुकारता रह गया.....


उल्फत ए ग़म इतने नासूर थे मेरे की
फर्क नहीं पड़ा उनके दिलाशों का
तनहा उनकी यादों में शाम हो गया.....



अब के बरस आलम कुछ ऐसा है की
उम्मीद का सूरज उगता नहीं
सुर्ख काली ये रात कटती नहीं
अन्हद आँखों से सावन बरसता रह गया...