आज दिल से आवाज़ आई...
तुमने गीत लिखे गुलज़ार लिखे...
दोस्ती भी की मौसिकी भी की...
शायर की तरह जस्बातों को एहसासों में पिरोया..
चंद ग़ज़ल भी लिखे मगर सूरज को ना लिखा...
तोह आज मैं सूरज को लिखता हूँ..
सूरज वो जो गीतों मे गुलज़ार है..
वो किरण जो कशिश है बहार है..
शीतल से मद्धम बारिश की फुहारें
स्वप्न के आकाश में उतरती कतारें..
सादगी और यारी में खुद को समेटे...
मै कह दूँ तो खुद को ना रोके...
वो एक शख्स मेरे किये जिसके खास मायने हैं..
सूरज वो जो ख़ुशी के साहिल में डूबा दे...
सूरज वो जो मुझसे कहने को बेकरार
सूरज वो जो सुनाने को तैयार..
एक नम हवा का झोंका
शरद में शामिल बसंत सी बहार..
संग जिसके मैंने यादों के पल समेटे...
संग जिसके बारिश में भींगे..
नदी में कुंए में डूबे मस्ती में भींगे..
मूवी को भागे हॉस्टल से कूदे..
बैठ साथ जिसके प्लान्स बनाये..
हवा हवाई में खूब ख्वाब संजोये..
साथ मिलके जिसके नैन लड़ाए..
साथ मिलके जिसके हँसे और रोये..
सारी दुनिया एक ओर वो और मै..
कोई हो ना हो वो और मै..
एक शख्स जो मुझे समझता है...
साथ मेरे चलता है...
दिल तो कहता है...और लिखूं
पर शब्द नहीं हैं बताने को..
की कितना खास है तू मेरे लिए...
शायद मै हूँ तेरे लिए और तू मेरे लिए...
गर साथ तुम मेरे ना होते..
तो मेरे एहसासों को अर्पण ना होते..
शायद इतनी रंगीन ना होती जिंदगानी..
और वक़्त की रवानी ना होती...