न कशिश न कोई तलब है इन नाकामियों में
आवारगी और खालीपन है इस ज़िन्दगी में...
वक़्त यूँ कटता लेके करवटें जैसे कि तूफ़ान
रह जाता है कारवां ए अंजाम मेरा राहों में..
उम्मीद न रही अब मुकम्मल सरहदों कि
रह गया हूँ खोकर कहीं इन गर्दिशों में...
न करीब है मंजिल कोई इस शहरे हयात में
बेनाम मुसाफिर से भटकते हैं खोये ख्यालों में..
आवारगी और खालीपन है इस ज़िन्दगी में...
वक़्त यूँ कटता लेके करवटें जैसे कि तूफ़ान
रह जाता है कारवां ए अंजाम मेरा राहों में..
उम्मीद न रही अब मुकम्मल सरहदों कि
रह गया हूँ खोकर कहीं इन गर्दिशों में...
न करीब है मंजिल कोई इस शहरे हयात में
बेनाम मुसाफिर से भटकते हैं खोये ख्यालों में..
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