वो गुजरे पलों को है संजोना लूँ मैं दिल को थाम जरा
कच्ची पक्की गलियों से गुजरना, वक़्त से परे ख्वाबों में उड़ना..
धुप लेके आसमान को तकना, तितली पकडे फुर्र फुर्र करना..
हो सुबह तो नदियों से गुजरना, भरी दुपहरी पतंगों का उड़ाना
आमो कि बगिया में पैठ लगाना, वो माली को छकाना मजे उड़ाना..
कितनी रौशनी होती थी आँखों में, कि शीत रुपी बूंदों का चमकना
बारिश में भीगना हूँ ठिठुरना, बहती नालियों में डोंगे बहाना..
लिए चंद ख्वाब मस्त सलोना, खेतों के पाले गन्ने चुराना.
दादी कि कहानी सुनाना, और दादे से बतियाना.
रहते थे मस्त आँचल तले, ना सोचा कभी आज क्यों रोना..
हसीन थे वो दिन और खूब था वो कारवां
आज रह गए बाकि उन दिनों कि यादें और निशान...
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