Wanderer's Diary

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"परमात्मन परब्रम्हे मम शरीरं पाहि कुरु कुरु स्वाहा".....
कल्याण मस्तु..


गर आ जाये जीने का सलीका भी तो .........चंद रोज़ आफताब है इस ज़िन्दगी को गुलज़ार करने के लिए..

मंदिर बहुत दूर है चलो किसी रोते हुए हुए बच्चे को हंसाया जाए...

इन यादों के उजियारे को अपने साथ रखना ना जाने किस रोज़ किस डगर किस घडी इस ज़िन्दगी क़ि शाम होगी..

Stay Rolling .......Keep Rocking .....and Keep Smiling...........

Saturday, June 11, 2011

जनाब की शिरकत कभी महफिलों में थी

फेस बुक पे चर्चाओं की शुरुआत हो गयी..
कोई चुलुबुल तो कोई झंडू बाम हो गए..



जानी पहचानी सड़कों पे लोग अन्जान हो गए..
सूरत वोहि रही बस तासीर मक्बूलात हो गए..
आए हैं लोग लेके फरियाद उनके दर पर..
बदल तो बस जनाब के जस्बात गए..


मुन्नी शीला और रज़िया में उलझी ये नज़रें
न जाने क्यों बदले बदले से हालत हो गए..
जनाब की शिरकत कभी महफिलों में थी
नज़रों के फलक में आप ईद इ आफताब हो गए..

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