मुसाफिर थे हम भी गुमनाम मंजिल के
मगर ठोकरों ने हमे चलना सिखा दिया..
गुजर पड़े जिन चौवारों और गलियों से..
उन हालातों ने सफ़र को याद बना दिया..
कभी कभी तो लगता था मै कौन हूँ..
और इस सनक ने हमें आवारा बना दिया..
महफ़िल ना मिले गुलज़ार होने वास्ते..
शायद इस खलिश ने मुझे शायर बना दिया..
होती नहीं मुकम्मल खैरियत सभी की..
इस एहसास ने तन्हाई का कायल बना दिया..
चंद अफसाने और अल्फाज़ हैं बयां करने को..
ज़िन्दगी की कशिश ने तलबगार बना दिया..
ना शौक है ना रिवायत है तरानों की..
किसी की मासूकी ने हैरत में ला दिया..
मेरी कश्ती की नसीब में साहिल कहाँ थी
मेरी उम्मीद के चरागों को कोई बुझा गया..
मुस्काने की आदत ना थी हमे
फिर क्यों हमे खामोश करा दिया....
दिल को शिकवा नहीं है एक शिकायत कि
मुझे ही निगेहबान क्यों बना दिया....
Awesome one... ultimate.. hatts off.. Liked it frm the core of my heart... !!
ReplyDeletehey Gaurav thanks buddy .....
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