Wanderer's Diary

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"परमात्मन परब्रम्हे मम शरीरं पाहि कुरु कुरु स्वाहा".....
कल्याण मस्तु..


गर आ जाये जीने का सलीका भी तो .........चंद रोज़ आफताब है इस ज़िन्दगी को गुलज़ार करने के लिए..

मंदिर बहुत दूर है चलो किसी रोते हुए हुए बच्चे को हंसाया जाए...

इन यादों के उजियारे को अपने साथ रखना ना जाने किस रोज़ किस डगर किस घडी इस ज़िन्दगी क़ि शाम होगी..

Stay Rolling .......Keep Rocking .....and Keep Smiling...........

Sunday, May 15, 2011

मेरे इनायतों को मक़ाम नहीं मिलता..

गीत हैं गाने को पर साज नहीं मिलता
चलता हूँ मगर कारवां नहीं मिलता..
जाने किस बात रूठी है मुक्कद्दर
मेरे इनायतों को मक़ाम नहीं मिलता..




दिल रो देता है कभी ये सोच कर की.
मेरे ही ख्यालों को अंजाम नहीं मिलता..
कदम दो कदम चलने वाले बहुत हैं
मगर कोई हुम्न्फाज साथ नहीं ठहरता..




रुक सी गयी है उमंग अब कहीं पर
बदल जाऊं पर कोई नकाब नहीं मिलता..
किश्तों और पैमानों की आदत नहीं है मुझे
पर क्या करें मेरी सोच को जहान नहीं मिलता..

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