Wanderer's Diary

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"परमात्मन परब्रम्हे मम शरीरं पाहि कुरु कुरु स्वाहा".....
कल्याण मस्तु..


गर आ जाये जीने का सलीका भी तो .........चंद रोज़ आफताब है इस ज़िन्दगी को गुलज़ार करने के लिए..

मंदिर बहुत दूर है चलो किसी रोते हुए हुए बच्चे को हंसाया जाए...

इन यादों के उजियारे को अपने साथ रखना ना जाने किस रोज़ किस डगर किस घडी इस ज़िन्दगी क़ि शाम होगी..

Stay Rolling .......Keep Rocking .....and Keep Smiling...........

Wednesday, July 20, 2011

शुक्रिया उपरवाले और ज़िन्दगी तेरी नेमतों का..

♥♥̲̅̅H̲̲̅̅̅A̲̲̅̅̅P̲̲̅̅̅​P̲̲̅̅̅Y̲̅ ̲̅̅B̲̲̅̅̅I̲̲̅̅̅R̲̲̅̅̅T̅​̲̲̅̅H̲̲̅̅̅D̲̲̅̅̅A̲̲̅̅̅​Y̲̅♥♥

आया था पल सुहाना लेके दिन दीवाना..
हुई महसूस कुछ ख़ुशी इन गुजरे पलों में
लगा बेहतर हमें इब्तेदा यूँ मुस्कुराना
शुक्रिया आप सभी का दिया जो ये नजराना...


अब के सावन ये जो मेरे साथ हुई है
पलकें खुली और आगाज़ हुई है..

दिन था इस दुनिया में आने का
सुबह ही यादों की बरसात हुई है..

कुछ यार थे कुछ रह गए राहों में
गुजरते सालों में कुछ खास हुआ है..

सपने न हुए मेरे हकीकत तो क्या...
उन सपनो को जीने की आदत हुई है..

आज गर किसी का है तो कल मेरा भी होगा..
उम्मीद ही सही इबादत हुआ है..



किसी ने खूब कहा है तू ही बता ज़िन्दगी मैं कैसे तुझे अपने प्यार के दायरे में समो कर रखूं जो की तेरी हर सुबह जीने के एक दिन कम कर देती है..उम्र के २५वें बसंत में आने की ख़ुशी साथ ही गुजरे लम्हों की खलिश भी है उन्हें और जीने के लिए...शुक्रिया उपरवाले और ज़िन्दगी तेरी नेमतों का..


आया था पल सुहाना लेके दिन दीवाना..
हुई महसूस कुछ ख़ुशी इन गुजरे पलों में
लगा बेहतर हमें इब्तेदा यूँ मुस्कुराना
शुक्रिया आप सभी का दिया जो ये नजराना..

Tuesday, July 12, 2011

दरिया की सरहदें तोड़ो, सुकून को रास्ते बनाने दो..

दर्द की खलिश और बेबसी टूटे रिश्तों को जोड़ देती है..
गोयाकि रिश्ते टूटने से दर्द होता है और दर्द रिश्ते जोड़ भी देता है!!
मनुष्य मन से बड़ा कोई अजायबघर नहीं, जहां कब तस्वीरें,
आईने और मूर्तियां टूट जाती हैं और कब जुड़ जाती हैं। संवेदना से बड़ा कोई फेवीकोल नहीं!!
























चिमनियों सी ज़िन्दगी को अब तो सांस आने दो
दरिया की सरहदें तोड़ो, सुकून को रास्ते बनाने दो..

या मुझसे आकर पूछ लो दायरे मेरी हदों के
या मेरी तड़प को अपने सीने में समाने दो...

ये बड़प्पन है या कोई बेबसी जो रह रह के पीता है
जरा आँखों की गठरी खोल जो आता है आने दो..

हर आसमान से पहले माँ का आंचल है
इसे छु कर वजू कर लें मंजिल पे जाने को..

तुमको भी कोई चूमेगा राहों में तेरी बिछकर
एक बार ज़रा दुनिया को  हौले से गुज़र जाने दो..

दहलीज़ दिये सी जलती है सीने से लगा लो
या फिर बारिश को ज़रा अपना पैगाम सुनाने दो...


Friday, July 8, 2011

तनहा उनकी यादों में शाम हो गया.....

मुद्दतों मै इंतज़ार करता रह गया
वो आए भी दर को हमारे..रहे बेगाने
हिज्र के अंधेरों में उन्हें पुकारता रह गया.....


उल्फत ए ग़म इतने नासूर थे मेरे की
फर्क नहीं पड़ा उनके दिलाशों का
तनहा उनकी यादों में शाम हो गया.....



अब के बरस आलम कुछ ऐसा है की
उम्मीद का सूरज उगता नहीं
सुर्ख काली ये रात कटती नहीं
अन्हद आँखों से सावन बरसता रह गया...

Sunday, July 3, 2011

कैसे कहें इब्तेदा यूँ मोहब्बत होने लगी है..

रोशन तेरी नजरों से सदायें आने लगी है
तन्हा इन राहों से कोई गुजरने लगी है..
संग शबनमी झोंको के बारिश होने लगी है
कैसे कहें इब्तेदा यूँ मोहब्बत होने लगी है..





इतनी थी इल्तेजा मेरे दिल की
न जाने क्यों वक़्त बेजार हो गया..
नज़रें तराशती रही खुशियों को
और ग़मों से मेरा करार हो गया..











यादों पे तेरी हर महफ़िल फ़िदा है..
एहसास का ये दामन तुझसे जुड़ा है...
हर मौसम दिल की यही सदा है....
मेरे अक्स का न कुछ तुझसे छिपा है..
गर हो तुम खफा मुझसे तो ये....
मेरी नहीं शायद वक़्त की खता है.....



यादों पे तेरी हर महफ़िल फ़िदा है..
एहसास का ये दामन तुझसे जुड़ा है...
हर मौसम दिल की यही सदा है....
मेरे अक्स का न कुछ तुझसे छिपा है..
गर हो तुम खफा मुझसे तो ये....
मेरी नहीं शायद वक़्त की खता है.....






शुक्रिया जो आपकी दुआओं में शामिल हूँ 
अंजन डगर और खोयी इन राहों पे सही
तुम सीप में मोती सी तामिल हो..
मेरी दोस्ती की कश्ती का साहिल हो...


आबाद हो तुम्हारी हसीन दुनिया
आपकी इनायतों का कायल हूँ...
साथ है आपका चलने के लिए
आरजू है खुदा की सो हासिल हो...

तेरी हर मुस्कराहट को आफताब सा संजो कर रखा है.......
हर एहसास को दिल ए गुलजार में समा कर रखा है.........
यकीन न आये तो मेरी तनहाइयों से पूछ लेना
तेरी यादों के फूल मैंने वक़्त के पन्नो में छिपा के रखे हैं...........

Saturday, July 2, 2011

आज वो बीता लम्हा बन गया है..


गुजरते हुए पलों में एहसास बदल सा गया है
सूखे हुए गुलाब सा मर्म सिमट सा  गया है ......
जाने किस अंजान डगर को बढ़ चले हैं कदम
मानो आने वाला हर मंज़र बिखर सा गया है....

बदली हैं इमारतों की तस्वीरें कुछ इस कदर क़ी
बसेरा तो है वही पर सुकून छीन सा गया है..
दूर हो गया है इंसानियत का दामन कहीं
नज़रों क़ी इस फेर में शय हो सा गया है...

कभी चलते थे मंजिल क़ी तलाश लिए
आज वो सफ़र और कारवां खो सा गया है..
इम्तेहान है ये शायद मेरे जूनून का
ख़त क़ी मेरा शीशा जार जार हो गया है...

फिरते थे परिंदे कभी इन फिजाओं में
जो आज गैरों का डेरा बन गया है..
होता था जिन गलियों में सैर सपाटा
आज वो बीता लम्हा बन गया है..

शायद यकीन न आये उन्हें मेरे जस्बातों पे
अब बेगानों पे भरोसा जो हो गया है..
आज भी मिल जाएँगी खोयी निशानियाँ
ख़त क़ी स्याह उन किनारों पर कुछ डूब सा गया है.