Wanderer's Diary

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"परमात्मन परब्रम्हे मम शरीरं पाहि कुरु कुरु स्वाहा".....
कल्याण मस्तु..


गर आ जाये जीने का सलीका भी तो .........चंद रोज़ आफताब है इस ज़िन्दगी को गुलज़ार करने के लिए..

मंदिर बहुत दूर है चलो किसी रोते हुए हुए बच्चे को हंसाया जाए...

इन यादों के उजियारे को अपने साथ रखना ना जाने किस रोज़ किस डगर किस घडी इस ज़िन्दगी क़ि शाम होगी..

Stay Rolling .......Keep Rocking .....and Keep Smiling...........

Friday, July 8, 2011

तनहा उनकी यादों में शाम हो गया.....

मुद्दतों मै इंतज़ार करता रह गया
वो आए भी दर को हमारे..रहे बेगाने
हिज्र के अंधेरों में उन्हें पुकारता रह गया.....


उल्फत ए ग़म इतने नासूर थे मेरे की
फर्क नहीं पड़ा उनके दिलाशों का
तनहा उनकी यादों में शाम हो गया.....



अब के बरस आलम कुछ ऐसा है की
उम्मीद का सूरज उगता नहीं
सुर्ख काली ये रात कटती नहीं
अन्हद आँखों से सावन बरसता रह गया...

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