मुद्दतों मै इंतज़ार करता रह गया
वो आए भी दर को हमारे..रहे बेगाने
हिज्र के अंधेरों में उन्हें पुकारता रह गया.....
वो आए भी दर को हमारे..रहे बेगाने
हिज्र के अंधेरों में उन्हें पुकारता रह गया.....
उल्फत ए ग़म इतने नासूर थे मेरे की
फर्क नहीं पड़ा उनके दिलाशों का
तनहा उनकी यादों में शाम हो गया.....
अब के बरस आलम कुछ ऐसा है की
उम्मीद का सूरज उगता नहीं
सुर्ख काली ये रात कटती नहीं
अन्हद आँखों से सावन बरसता रह गया...
अब के बरस आलम कुछ ऐसा है की
उम्मीद का सूरज उगता नहीं
सुर्ख काली ये रात कटती नहीं
अन्हद आँखों से सावन बरसता रह गया...
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