खुशहाल सी दुनिया है मेरी मिटा रहा है कोई..
ख्वाहिश अधूरी थी जला रहा है कोई...
वक़्त जब आया है उम्मीदों पे उतरने का..
सिरे से नीचे गिरा रहा है कोई........
लहर सि उठी थी साहिल पर जाने क़ि...
कश्ती मजधार में डूबा रहा है कोई...
जब लगा ज़िन्दगी रुक सि गयी है कहीं पे..
एहसास हुआ सीने में दर्द समां रहा है कोई..
चंद पलों का ख्वाब जो देखा...
नींदे मेरी चुरा रहा है कोई...
फासलों का पता था फिर इक पल को लगा....
दिल क़ि धडकनों को बडा रहा है कोई...
लगा क़ि ठहर जाते हैं इक पल को..
तो मेरे आशियाने को चना रहा है कोई...
निगेहबान थी मेरी नज़रें तेरी यादों क़ि...
वो कहते हैं नज़रें चुरा रहा है कोई....
मन बेजार परिंदा था मेरा ...
बंदिशों में घिरा जा रहा है कहीं...
पतंग मेरी ढीली थी उड़ा रहा है कोई...
पतवार मेरी हलकी सि मुहाने पे हिला रहा है कोई...
वीराने में ही सही बस्ती थी मेरी इक हम्नफाज
धीरे से उसके अक्स को मिटा रहा है कोई...
कल हो ऐसा क़ि हम ना रहें...
पर आज मेरा छिना जा रहा है कहीं....
दुनिया के भीड़ में हस्ती खोई जा रही है कहीं...
वक़्त के निशाने पे हर लम्हा खोया जा रहा है कहीं...
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