दिल में इक चुभन सी है, तुम कहीं से आ जाओ...
हर तरफ अगन सी है, तुम कहीं से आ जाओ...
ग़म क़ि भीगी रातों में अपना दिल नहीं लगता..
आँखों में पवन सी है, तुम कहीं से आ जाओ...
अब खुली फिजा में भी सांस लेना मुश्किल है...
अब अजब घुटन सी है, तुम कहीं से आ जाओ...
हर ख्याल ओ ख्वाब मुरझाई सी है
रूह पर शिकन सी है, तुम कहीं से आ जाओ...
हिज्र के अंधेरो में इंतज़ार है तेरा
दिल में इक किरण सी है ,तुम कहीं से आ जाओ...
शाम -ए -वस्ल के घुंघरू नाचते हैं सोचों में
फिर वही छनन सी है ,तुम कहीं से आ जाओ
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क्या कहूँ इस इश्क में मुझ पे क्या गुज़री है
तन्न में इक तडपन सी है ,तुम कहीं से आ जाओ...
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बाघ -ओ -गुल भी गैर हैं ,राष्ते भी पराये हैं
जी बैचेन से है ,तुम कहीं से आ जाओ....
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जाने कितनी रातों से मुज़्तरिब सा हूँ वसीक
जाने क्या लगन सी है ,तुम कहीं से आ जाओ......!!!
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