ये तो नहीं है मेरी मंजिल, फिर क्यों हूँ मै यहाँ..
जाना तो है और कहीं मगर, मैं जाऊं भी तो कहाँ..
ऐसा लगता है ज़िन्दगी, के क्या मैं कहूं..
किताबों में लिखी हुई जैसे हूँ मै कोई दास्ताँ..
यूँ ही ना गुजर जाये उम्र राहें तलाश करने में..
कहीं तो होगा ज़रूर मेरे, ख्वाबों का आशियाँ...
समंदर से गहरा है दर्द ए दिल मेरा भी....
बयां कर नहीं सकते, होंठो पे है खामोशियाँ...
मुकद्दर तो अपनी ऐसी है क़ि ताजुब है..
हर रोज होता है लम्हा ..मेरे सब्र का इम्तेहान..
जी में तो आता है के चले जाऊं दूर कहीं..
बेजार लगने लगता है, ये पलछिन जहाँ...
उम्मीदों का चराग कहीं, बुझ ना जाये इस जद्दोजहद में..
सुन ले खुदा तुझसे, ये अर्जी है मेरी..
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