Wanderer's Diary

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"परमात्मन परब्रम्हे मम शरीरं पाहि कुरु कुरु स्वाहा".....
कल्याण मस्तु..


गर आ जाये जीने का सलीका भी तो .........चंद रोज़ आफताब है इस ज़िन्दगी को गुलज़ार करने के लिए..

मंदिर बहुत दूर है चलो किसी रोते हुए हुए बच्चे को हंसाया जाए...

इन यादों के उजियारे को अपने साथ रखना ना जाने किस रोज़ किस डगर किस घडी इस ज़िन्दगी क़ि शाम होगी..

Stay Rolling .......Keep Rocking .....and Keep Smiling...........

Tuesday, February 22, 2011

अनजान है डगर फिर भी हौसला है हमसफ़र ...............


ये तो नहीं है मेरी मंजिल, फिर क्यों हूँ मै यहाँ..
जाना तो है और कहीं मगर, मैं जाऊं भी तो कहाँ..

ऐसा लगता है ज़िन्दगी, के क्या मैं कहूं..
किताबों में लिखी हुई जैसे हूँ मै कोई दास्ताँ..

यूँ ही ना गुजर जाये उम्र राहें तलाश करने में..
कहीं तो होगा ज़रूर मेरे, ख्वाबों का आशियाँ...

समंदर से गहरा है दर्द ए दिल मेरा भी....
बयां कर नहीं सकते, होंठो पे है खामोशियाँ...

                                               

मुकद्दर तो अपनी ऐसी है क़ि ताजुब है..
हर रोज होता है लम्हा ..मेरे सब्र का इम्तेहान..

जी में तो आता है के चले जाऊं दूर कहीं..
बेजार लगने लगता है, ये पलछिन जहाँ...

उम्मीदों का चराग कहीं, बुझ ना जाये इस जद्दोजहद में..
सुन ले खुदा तुझसे, ये अर्जी है मेरी..

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